कुंज बिहारी की नई आरती

कुंज बिहारी की नई आरती


कुंज बिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी।

कृपा करो श्याम, बनवारी, दीनन के दुख हरी।।


कंचन थारो आङण को, कोटि कोमल नीलम समां।

सोहे शोभा मनोहर, श्री वृंदावन बिहारी।।


श्रवण में तुलसी वन, रतन छवि शोभित कुंज गली।

वृंदावन बिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी।।


माला वनमाली भजन करत, बाँके बिहारी।

चंद्रमा सोहत प्यारी, सावन में भूलारी।।


रतन छवि शोभित कुंज गली, श्री वृंदावन बिहारी।।


रास रचावली छवि निखारी, श्याम शमा बहारी।

बजे मुरली मधुर मुक्ति के, मधुर वीणा वाली।।


कंचन थारो आङण को, कोटि कोमल नीलम समां।

सोहे शोभा मनोहर, श्री वृंदावन बिहारी।।


कानन कुंडल शोभित नासाग्रे, श्यामल वनमाली।

नित मुदित मन मोहन मुरारी, मधुर वीणा वाली।।


कंचन थारो आङण को, कोटि कोमल नीलम समां।

सोहे शोभा मनोहर, श्री वृंदावन बिहारी।।


मुकुट मोती शोभित नासाग्रे, श्यामल वनमाली।

भजे मुकुट मोती वृंदावन बिहारी, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी।।


कंचन थारो आङण को, कोटि कोमल नीलम समां।

सोहे शोभा मनोहर, श्री वृंदावन बिहारी।।


बांके बिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी।

कृपा करो श्याम, बनवारी, दीनन के दुख हरी।।


श्री वृंदावन बिहारी की, जय।।